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Monday, November 6, 2023

मुस्कुराहटें

मुस्कुराहटें

 

दर्द का दरिया गुजरे वक्त हुआ,

 मुस्कुराहटों पर सायों की अभी कमी थी।

बक्श भी दो इनको, कहीं ये ही ना कह बैठे,

करने वालों ने कभी इनायत की ही नहीं।

 

दर्द का दरिया गुजरे वक्त हुआ,

जो मुस्कुराहटें अब भी खिली सी हुई,

इनको मत देखो अचरज से,

ये तो हैं, दर्द की निशानी, किस्मत की लिखी हुई।

 

बक्श भी दो इनको अब तो अगर,

हर  किस्से का दर्द , हां , संजोकर,

सहज नहींपलके भर भर भिगो कर,

बमुश्किल सही ,पाई है अपने दम पर

 

सरोज

 

Thursday, October 26, 2023

हम पापा की परियां , हमें तो नई करवाचौथ मनानी !





हम पापा की परियां , हमें तो नई करवाचौथ मनानी !


छोड़ो कल की बातें ,   कल की बात पुरानी,

नए दौर में करवा चौथ,   अब के नई मनानी ,

हम पापा की परियां,    हैं तो लिखी पढ़ी जनानी!

लगा लो नौकर चाकर,    हुई हम तो घरों की रानी!


श्रृंगार और शान का दिवस,   ये तो है सालाना,

इसे पूरे मन से इस बार तो,   कुछ नया है निभाना,

निर्जला ना सही बसकी ,   व्रत तो रख ही जाना ,

निभ जाए जितना उतना ही,   होता है बस निभाना।


ताने तेरे तरकश में थे बहुत ,   पुराने ओ जमाने ,

तेरे चलाने से ही क्या,   चलते हम सब जाते,

तूझे पता क्या? आते है,   तुमको तो मुंह पिचकाने!

परवाह करते रहें  तेरी ही,   चाहे बस तू माने!

 

बदल गया जमाना,   सवाल खुद पर उठाना जी,

जमाने को बद अब भी करते,   कुछ मुठ्ठी भर ही,

अपना कौन किसे बेगाना,    तुम जो किया करते हो !

अपनी जुबां की गुलामी,    जी भर भर किया करते हो !


बेटियों के हक की बातें,   ना तुम्हारे बस की हो ,

मेरी मेरी कह अहंकार,   बस पिया करते हो !

अपनो के लिए ,ले राय,   है किया जाता जो,

निभाएं सदा संग जाय हम,   आता कुछ और  तुमको?


रुलाने के बहाने तुम ढूंढो ,   चाहे कितने गिन भी,

हम तो जीने की खुशियां ,   खुद बना तो लेंगें ही,

कर पुराने जमाने हमको,   कर ले अकेला कितना भी!

जंगल में मंगल खुद आप ,    हम तो सजा लेंगें ही !


मर मर के बांधे हो घर को ,    तुम पक्की डोर हो !

तो सुनो बहन बेटी बहु ,    सारी मम्मियां जो हो !

मान-सिंदूर-संग मांग को,    अबकी जी भर सजाओ! 

अबके कुछ निराला ही व्रत,    तुम कर जाओ!


नारी नर को जन्म दे,    नर से पिछड़ी जाती क्यों,

पालना दोनो को था समान,   तुम वो कर जाती जो,

बताओ आधी दुनियां,    बात समझ ना पाती तो,

आधी दुनिया खुद पर यो,   इतना इतराती क्यों ?


अजी निराला करवा अब के,   तुमको नया सजाना!

अब के बरस तुम करवाचौथ,   अजी ऐसे निभाना,

तुम्हारे जीने के जो मायने हैं,   अजी खूब ही समझाना,

आधे दिन उपवास अबके ,   पति देव से भी करवाना!


“सरोज”


 


Tuesday, October 24, 2023

Ravana's Lanka

 

 

Ravana’s Lanka

 

Ravana’s Lanka, by his pride consumed,

By lustful fire to ashes soon was bloomed.

His wicked deeds had earned a bitter fate,

And Sita’s abduction sealed his gloomy state.

 

For he, a man of power and might,

Deemed Sita weak, and challenged Heaven’s light.

But she, a goddess pure and strong, defied,

His every move, his every wicked stride.

 

So every year, in Ramlila’s embrace,

We burn Lanka, to wipe his evil trace.

A symbol of the downfall of the proud,

Of how the wicked always will be bowed.

 

But Ravana’s Lanka was not just a place,

It was a mirror of his inner disgrace.

His arrogance, his lust, and his disdain,

All burned within, and consumed his domain.

 

“Saroj”

 

 

 

Sunday, October 22, 2023

ऐ भारत! तूझे कोटि कोटि प्रणाम !

भारत! तूझे कोटि कोटि प्रणाम !

 

भारत! तूझे कोटि कोटि प्रणाम

रहे गौरव गाथा का सदा जग में प्रमाण,

अंतरिक्ष में तेरा अब तो परचम लहराता,

सूर्य तारों से नयन , अदा से है मिलाता

 

उदीप्त तेरी ज्योति से, सभी तेरे अभियान

हो विशिष्ट चंद्रयान, आदित्य या समुद्रयान,

जैसे अंतरिक्ष मिशन सफल, होंगें शेष भी,

सीमा नहीं तेरे अतुलनीय ज्ञान विशेष की

 

2008 की चंद्रयान1 उड़ान हुआ सिद्ध मील का पत्थर,

पानी खोजें वहां , 312 दिन चंद्र की परिक्रमा कर कर,

पहला चंद्र मिशन गौरवशाली इतिहास है रचे,

अन्य अभूतपूर्व खोजों से भी, हमें अनुग्रहित करे

 

2019 में चंद्रयान-2 भी सपनो सी उड़ान भरे,

चला रोवर लैंडर उतारने चंद्रमा के आलिंगन में,

ना पूर्ण सफल हुआ किन्तु लैंडर रोवर तैनाती में,

पर अब भी ऑर्बिटर की सफलता थी हमारे हाथ में

 

जून 2023, चंद्रयान-3 भी सफल उड़ान भरें,

सॉफ्ट लैंडिंग कर चंद्र चुम्बन से इतिहास रचे,

इस मिशन से इसरो सिखाए, हम कुछ भी कर दिखाए,

असम्भव नहीं,भारत किसी भी मुकाम को छू जाए

 

2023 जुलाई एक, आदित्य की पहली उड़ान बनी,

सूर्य अध्ययन करना, उसकी ज्वलंत योजना थी

सटीक उपकरणों से, प्रत्येक किरण का विश्लेषण करता है,

क्रोमोस्फीयर,फोटोस्फियर पर डेटा उजागर करेगा ,करता है

 

2023 की 22 अक्टूबर को गगनयान आसमां छुआ,

हमारी पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान, एक सपना सच हुआ,

विज्ञान और साहस की हुए फिर एक और नई जीत,

आओ बच्चो! तुम भी बनो, स्पेस एक्सप्लोरेशन के मीत

 

2025 में लो फिर समुद्रयान भी तो जाएगा,

गहरे समुद्र में, खोजने गहरे ज्ञान डुबकी लगाएगा,

यह मिशन हमें ग्रह की अनंत संभावनाएं  दिखाएगा,

भारत हमारा, विश्व विजयी फिर से ही कहलाएगा !

 

सरोज

Thursday, October 19, 2023

निमंत्रण है आपको , अगर स्वीकार हैं




निमंत्रण  है आपको  , अगर स्वीकार हैं

 

चलिए कुछ  अच्छा  कह जाएं,

चलिए कुछ  अच्छा सुन  जाएं,

चलिए  कुछ अच्छा कर  जाएं,

पैसों से दूर,  इक जहां सजाएं,

 

इस जीवन की  तंग गलियां सी क्यों है,

ख्वाहिशों पर ख्वाहिशें, बड़ी सी क्यों हैं,

ये दिल फिर भी सुकून का तलबगार हैं,

इसे भी तो ,रोज ही खुशी की दरकार हैं,


 ये एहसासों का तराना है,

भीग जाए जिसमे मन ,

वही तो गुनगुनाना है,

आप कदम तो बढ़ाइए, 

हर मोड़ पर नया फसाना है,

 

अपने हिस्से का कुछ मीठा ढूंढ लाते हैं,

कुछ बड़ियां सा हम भी परोस जाते  हैं,

रंग कुछ कुछ अपना ऐसे छोड़ जाते  हैं,

चलो मिलकर , रंग इंद्रधनुषी सजाते हैं !

 

“सरोज”


Tuesday, October 17, 2023

Silence



 Silence


When your silence speaks,

Your words fly with wings,

 

And reflecting your soul they sing,

Your thoughts resonate with wind,

 

And they soar high, glide through the air.

For untold symphonies, just to share.


"Saroj"

 

Friday, October 13, 2023

बादल आज तुम जम के बरसो!

  


"बादल आज तुम जम के बरसो"


बादल आज तुम जम के बरसो,

धरा की प्यास बुझाने बरसो,

तुम इसको अमृत से भर दो,

धरती को फिर पावन कर दो।

 

पहाड़ों  पर तुम घिर घिर आओ,

फट बह बह झरने बन जाओ,

तालाब तलहटी तर कर जाओ ,

कण कण में जीवन ज्योत जगाओ।

 

मैदानों पर उमड़ घुमड़ मचाओ,

जाकर सूरज की तपिश हटाओ,

खेतों में जीवन बन लहलाओ, 

पशु पक्षी आनंदित कर आओ।

 

जलते , जंगली  आग बुझाओ,

सूखे वनों को प्राण लौटाओ,

सब प्यासे भटकते जाओ जाओ,

नव जीवन की लहर दौड़ाओ

 

मरू भूमि की तड़पन मिटाओ,

उसमे जाकर धड़कन सजाओ,

उसकी सूखी झोली भर आओ,

बन हरियाली वहां बस जाओ।

 

पहाड़ी ढलानें धाराओं से धोकर,

मैदानी हवाओं की आर्द्रता भिगोकर,

वनों की पत्तियों में टपक खनक कर,

रेगिस्तानी सपनो में सिमट लिपट कर।

 

बादल आज तुम जम के बरसो,

धरा की प्यास बुझाने बरसो,

तुम इसको अमृत से भर दो,

धरती को फिर पावन कर दो।

 

"सरोज"

 

Monday, October 9, 2023

सफ़ेद स्याह




शिकायत करे तुमसे, कोई इस सफ़ेदी की, बता देना ,
स्याही उतर रही,कागज़ों पर रोज़-रोज़,
पूछते थक भी जाओ तो पढ़ लेना,
उठा के नजर किसी रोज़ !

"सरोज"

Sunday, October 8, 2023

Indian women




Indian women

Indian women, they hold their place,
Laws have been made to ensure their grace.
Yet oppression still does reign,
An irony that causes pain.

Education they receive,
And in their careers they achieve.
But at home, their rights are less,
A misfortune, a duress.

In politics, they play their part,
Serving the nation with all their heart.
But respect in society, they lack,
A sadness that leaves them slack.

In sports, they win medals bright,
Bringing glory with all their might.
But praise like male players, they do not get,
A tragedy that leaves them upset

In art and literature, they inspire,
Their contributions set hearts on fire.
But fame like male artists, they do not see,
An imperfection that's free.

As mothers, they nurture their children dear,
With love and care, they persevere.
But help in household chores, they do not find,
An injustice that leaves them blind.

As wives, they support their husbands true,
Standing by them through thick and thin.
But domestic violence, they may face,
A painful scar, a bitter chase.

As daughters, they care for their parents dear,
With love and devotion, they shed no tear.
But equal respect from them, they do not see,
A dishonesty, a decree.

"Saroj"

भारत की नारी

भारत की नारी

प्राचीन भारत में भी था स्थान ,
आज भी अधिकार, कहां उत्थान?
यह है अत्याचार, क्यों?
यह एक विडंबना, पर क्यों?

शिक्षा,आजीविका में विजय मिलती ,
घर के अधिकारों, कहां है गिनती,
यह है एक दुर्भाग्य, क्यों?
यह है एक कटुता, पर क्यों!

राजनीति और सेवा मे आकर भी,
उतना उसे समाज में सम्मान नहीं,
यह है दुख, क्यों?
यह है कड़वाहट, पर क्यों?

पदक जीत कर गौरवान्वित करती ,
पुरुष खिलाड़ियों सी प्रशंसा नहीं,
यह है एक त्रासदी, क्यों?
यह है एक अपमान, पर क्यों?

कला और साहित्य मे होकर भी,
पुरुष कलाकारों सी ख्याति नहीं,
यह है एक अपूर्णता, क्यों?
यह है एक कमी, पर क्यों?

माँ है, बच्चों को पालती जहां,
घर के कामों में सहयोग कहां,
यह है एक अन्याय, क्यों?
यह है एक अपमान, पर क्यों?

पत्नी है, पति का देती है साथ,
घरेलू हिंसा का पाए प्रसाद,
यह है एक दर्द, क्यों?
यह है एक त्रासदी, पर क्यों?

करें माता-पिता की सेवा ,सम्मान,
परंतु हक मिलते कहां समान ?
यह है एक बेईमानी, क्यों?
यह है एक धोखा,पर क्यों?

उठो , नारी करते आह्वान !
अधिकारों को लड़ो , पाया ज्ञान,
अपनी आवाज़ इतना बुलंद करो,
अपना मान, सम्मन प्राप्त करो !


"सरोज"


Friday, October 6, 2023

**The Queen's Quest: A Poetess's Realm**

**The Queen's Quest: A Poetess's Realm**

In a land not so far away, 🌎
Where the sun shone bright, ☀️ but the people blindfold 😷obeyed, 👫👑,
A king 👑 ruled with an iron sway, ⛓️,
And the people lived in fear and dismay. 😥🥶

But then arose a poetess's voice, 🤷🏼‍♀️🎤,
That could not be ignored, its choice, 📢🗣️,
To speak the truth, to wake the soul, 💡🧠,
And make the people bold. 💪

**Verses: The Poetess's Call**

Arise, my people, arise!
Let us break the tyrant's chains ⛓️.
Let us unite our hearts and minds 🧠❤️,
And build a nation anew 👫👫👫🤝.

Too long have we suffered under his rule 👑,
Too long have we lived in fear 😥🥶.
But now the time has come to stand up, 👫👫👫✊,
And fight for our freedom, dear 🕊️.

We are the people, and we have the power, 👫👫👫💪,
To shape our own destiny 👫👫👫🤝.
We will not be ruled by a tyrant, 🤴,
We will not be slaves ⛓️, you see 👁️.

We will build a nation based on justice, ⚖️,
Equality, 🤝, and peace ☮️.
Where everyone is valued, 👫👫👫❤️,
And where everyone has a voice 👫👫👫🗣️.

So come, my people, let us join hands, 👫👫👫🤝,
And create a better world 🌎.
A world where everyone can thrive, 📈,
And where our children can unfurl 👫👫👫🕊️.

***Verses: A Poetess's Call to Action*
**

Her poem spread like wildfire, from town to town, 🔥🏘️,
And the people began, to gather around. 👫👫👫,
They marched in the streets, they raised their voices, 🥁📣,
Demanding justice and their choices. ⚖️🤝

**Verses: The Tyrant's Response**

The king 👑 was furious, he tried to stop them, 🤬✋,
But the people were united, they would not succumb, 👫👫👫🤝,
To stand their ground, to fight as one, ⚔️🛡️,
Until the king's 👑 reign was done. 🔚

**Verses:The Queens Quest

But poetess queen 👸 knew, the fight was not over, ⚔️😔.
Seeds of hatred had been sown, 🌾😡,they would surely smother. 🌾😔
So she gathered her friends, the owl 🦉, fox 🦊, and rabbit 🐇.
And together they set out to rebuild "one nation" habit. 👫👫👫🤝

The owl 🦉 taught the people, wisdom of the ages, 📖🦉,
He showed them how to live in harmony and oneness. ☯️🤝
The fox 🦊 taught them the importance of wit, 🧠🦊,
He showed how to defend themselves, not just sit. 🦊🛡️

The rabbit 🐇 taught compassion and love, 🐇❤️,
The queen 👸 showed, how to care for others from above. 👸🕊️
Together, the poetess queen 👸 and her friends,
Brought peace to the land. ☮️

The owl 🦉, with wisdom old and deep, 🦉📖,
Did seek adventure, secrets to keep. 🦉🔍
He soared the skies, with wings so wide, 🦉🦅,
To distant lands, where wonders hide. 🦉🗺️

The rabbit 🐇, with fur so white, 🐇☁️,
Did seek adventure, day and night. 🐇☀️🌙
Through forests deep, and meadows green, 🌳🐇,
He danced and leapt, with boundless glee. 🐇🕺

Unknown to each, on separate path, 🦉🐇🚶🚶‍♂️,
The owl 🦉 and rabbit 🐇 braved the aftermath. 🦉🐇💥
They faced the unknown, with courage true, 💪🦉🐇,
And sought the wisdom that was due. 🦉🐇📖

The owl 🦉, in ancient ruins lost, 🦉🏛️,
Did find a treasure, long since cost. 🦉💎💰,
A scroll of knowledge, old and wise, 📜🦉,
With secrets hidden, from mortal eyes. 📜👁️

The rabbit 🐇, in the forest deep, 🐇🌳,
Did meet a sage, with wisdom to keep. 🐇🧙‍♀️,
He taught the rabbit 🐇, secrets rare, 🐇📖,
Of nature's magic, everywhere. 🐇🌳✨

With newfound knowledge, hearts so bright, 🦉🐇❤️‍🔥,
The owl 🦉 and rabbit 🐇 took back their flight. 🦉🐇✈️,
Back to their friends, they did return, 🦉🐇👫👫👫,
To share their wisdom, and lessons learned. 🦉🐇🤝

They established a new government, 🏛️⚖️,
On justice, equality, and truth, ⚖️🤝,
And in this land, where all were free, 👫👫👫🗽,
The people lived in harmony. 👫👫👫☯️

A threat to peace, group of nobles 🎩 plotted deep, 🎩😈,
The old order they would keep, 🎩👑,
So to the fox 🦊, they made their plea, 🦊🎩,
To join their ranks, and set them free. 🦊🎩🤝

The fox 🦊 was tempted by the power, 🦊🎩👑,
To rise above, higher and higher, 🦊📈,
But he knew the queen 👸 was wise, 👸📖,
And ruled with kindness, not with lies. 👸🕊️

He struggled long, with conscience torn, 🦊😔,
But in the end, his loyalty sworn, 🦊👸,
To the poetess 👸, he did impart,
The nobles' plot, with cunning art. 🦊🎩🎭

The poetess 👸 was grateful then,
To know her friend was steadfast friend, 👸🤝🦊,
And so they planned, with caution great, 👸🦊🦉🐇,
To thwart the nobles' vengeful hate. 👸🦊🦉🐇⚔️🛡️

The nobles struck, with mighty force, 🎩⚔️,
But Queen 👸 and friends 🦊🦉🐇 were ready, of course.
They fought bravely and with all their might, 👸🦊🦉🐇⚔️🛡️,
And they emerged victorious, bathed in light. 👸🦊🦉🐇🏆✨

Their land from tyranny's dark night, 👸🦊🦉🐇🏴‍☠️🔥,
And ushered in a dawn so bright, 👸🦊🦉🐇☮️☀️,
Of peace and prosperity, 👸🦊🦉🐇🕊️💰,
For all to share eternally. 👸🦊🦉🐇👫👫👫♾️

**Verses: The Poetess's Vision**

The poetess 👸 and friends 🦊🦉🐇 did strive,
To make people's lives thrive, 👸🦊🦉🐇👫👫👫📈,
With schools and hospitals galore, 👸🦊🦉🐇🏫🏥,
And jobs for all, forever more. 👸🦊🦉🐇💼💰

They also sought to understand, 👸🦊🦉🐇🤝,
With neighboring lands, hand in hand, 👸🦊🦉🐇🤝👫👫👫,
To promote peace and harmony, 👸🦊🦉🐇☮️🤝,
For all to live in unity. 👸🦊🦉🐇👫👫👫☯️

Under the poetess's 👸 wise reign,
The land did flourish, without stain, 👸🦊🦉🐇👫👫👫☮️☀️,
The people happy, prosperous, 👸🦊🦉🐇👫👫👫🕊️💰,
In peace and harmony, so joyous. 👸🦊🦉🐇👫👫👫☯️🎶

But time did pass, and soon the day, ⌛️👸,
When the poetess 👸 announced her sway, 👸👑,
Must come to an end, 🔚, and she retire, 👸
To let a new generation aspire. 📈

The people saddened, but they knew, 😥😔,
Their debt to her, forever true, 👸👫👫👫♾️,
For she, the poetess 👸, had freed,
Their land from tyranny's dark deed. 👸🏴‍☠️🔥⚔️🛡️

**Verses: A Legacy of Poetess**

So the story ends, but the poetess's name, 👸,
Will forever be remembered, with undying fame. 👸♾️✨,
For she was the one who brought peace and light, 👸☮️☀️,
To a land once shrouded in darkness and night. 👸🏴‍☠️🔥⚔️🛡️

Her name shall echo through the ages, 👸♾️🗣️,
Her deeds of valor, on history's pages, 👸📜,
A poetess 👸 of courage and grace,
Who left her mark on this earthly space. 👸🌎🪐

" Saroj Gautam "

The Queen's Quest: The Realm of the Poetess

In a land not so far away,
Where the sun shone bright ,but  people blindfold obeyed,
A tyrant ruled with an iron sway,
And the people lived in fear and dismay.

But then arose a poetess's voice,
That could not be ignored, its choice,
To speak the truth, to wake the soul,
And make the people bold. 

**Verses:The Poetess's  Call**

Arise, my people, arise!
Let us break the tyrant's chains.
Let us unite our hearts and minds,
And build a nation anew.

Too long have we suffered under his rule,
Too long have we lived in fear.
But now the time has come to stand up,
And fight for our freedom, dear.

We are the people, and we have the power,
To shape our own destiny.
We will not be ruled by a tyrant,
We will not be slaves, you see.

We will build a nation based on justice,
Equality, and peace.
Where everyone is valued,
And where everyone has a voice.

So come, my people, let us join hands,
And create a better world.
A world where everyone can thrive,
And where our children can unfurl.

**Verses: A Poetess's Call to Action**

Her poem spread like wildfire, from town to town,
And the people began, to gather around.
They marched in the streets, they raised their voices,
Demanding justice and their choices.

**Verses: The Tyrant's Response

The tyrant was furious, he tried to stop them,
But the people were united, they would not succumb,
To stand their ground, to fight as one,
Until the tyrant's reign was done.

**Verses:The Poetess's Quest**

But the poetess knew , fight was not over,
Seeds of hatred had been sown,
they would surely smother.
So she gathered her friends,  owl, fox, and rabbit,
And together they set out to rebuild "one nation" habit.

The owl taught  people , wisdom of the ages,
He showed them how to live in harmony and oneness.
The fox taught them the importance of wit,
He showed how to defend themselves, not just sit.

The rabbit taught compassion and love,
Poetess Queen showed , how to care for others from above.
Together, the poetess and her friends,
With brought peace to the land.

The owl, with wisdom old and deep,
Did seek adventure, secrets to keep.
He soared the skies, with wings so wide,
To distant lands, where wonders hide.

The rabbit bold, with fur so white,
Did seek adventure, day and night.
Through forests deep, and meadows green,
He danced and leapt, with boundless glee.

Unknown to each, on separate path,
The owl and rabbit braved the aftermath.
They faced the unknown, with courage true,
And sought the wisdom that was due.

The owl, in ancient ruins lost,
Did find a treasure, long since cost.
A scroll of knowledge, old and wise,
With secrets hidden, from mortal eyes.


The rabbit, in the forest deep,
Did meet a sage, with wisdom to keep.
He taught the rabbit, secrets rare,
Of nature's magic, everywhere.


With newfound knowledge, hearts so bright,
The owl and rabbit took back their flight.
Back to their friends, they did return,
To share their wisdom, and lessons learned.

They established a new government,
On justice, equality, and truth,
And in this land, where all were free,
The people lived in harmony.

A threat to  peace , group of nobles plotted deep,
The old order they would keep,
So to the fox, they made their plea,
To join their ranks, and set them free.

The fox was tempted by the power,
To rise above, higher and higher,
But he knew the poetess was wise,
And ruled with kindness, not with lies.

He struggled long, with conscience torn,
But in the end, his loyalty sworn,
To the poetess, he did impart,
The nobles' plot, with cunning art.

The poetess was grateful then,
To know her friend was steadfast friend,
And so they planned, with caution great,
To thwart the nobles' vengeful hate.

The nobles struck, with mighty force,
But Queen and  friends were ready, of course.
They fought bravely and with all their might,
And they emerged victorious, bathed in light

Their land from tyranny's dark night,
And ushered in a dawn so bright,
Of peace and prosperity,
For all to share eternally.

**Verses: The Poetess's Vision**

The poetess and friends did strive,
To make people's lives thrive,
With schools and hospitals galore,
And jobs for all, forever more.

They also sought to understand,
With neighboring lands, hand in hand,
To promote peace and harmony,
For all to live in unity.

Under the poetess's wise reign,
The land did flourish, without stain,
The people happy, prosperous,
In peace and harmony, so joyous.

But time did pass, and soon the day,
When the poetess announced her sway,
Must come to an end, and she retire,
To let a new generation aspire.

The people saddened, but they knew,
Their debt to her, forever true,
For she, the poetess, had freed,
Their land from tyranny's dark deed.

**Verses:A Legacy of Poetess**

So the story ends, but the poetess's name,
Will forever be remembered, with undying fame.
For she was the one who brought peace and light,
To a land once shrouded in darkness and night.

Her name shall echo through the ages,
Her deeds of valor, on history's  pages,
A poetess of courage and grace,
Who left her mark on this earthly space.

"Saroj Gautam"

Wednesday, October 4, 2023

तेरे संग साथ!

तेरे संग साथ!

ओह !   तुम  ही  हां,  सब जमाए हो,
सब जाने, अपने हाथो, सब लाए हो !

तुम  खुश कभी, रह  भी पाते हो ,
अकेले अकेले कभी, थक ना जाते हो?

सिर्फ अपनी करे जाना, और बात है, 
संग साथ लेकर चलाना, और बात है,

कैसे हो सकती , ये एक  समान है,
हमेशा ही मनवाना, कहां की  शान है?

राग अलाप, खुद मगन हुए जाते हो ,
हम  भी नाचे, इतना क्यों इतराते हो !

मान ही जाएंगें ,खुद पर इतना एतबार?
क्यों चले तेरा, कायदा कानून हर बार? 

पगले वो , जो संग मरे जा रहे ?
हां में हां मिला, बलवा मचा रहे !

पसंदीदा चुन चुन , संग संग जमा रहें  !
दशकों किया इंतजाम, अब ईनाम पा रहें !

 उन्हे देख उन्ही सा हाल ,हो चाहते,
 शुरू हो भी पाए वैसा , कर पाते,

तर्क में , हां,  कुछ गलत बिठाए हो !
संग में ,अकेले ,जीने चले आए हो !

तुम्हारी आंखों में , क्यों पट्टी बंधी है?
राह सामने खड़ी ,पांव बेड़ी पड़ी है?

आज़माइश कि ये, शायद अन्तिम कड़ी है?
राहें  रुकती नहीं,  मंजिलों पर बढ़ी हैं !

समय की धार को, मुट्ठी में मोड़ना ,गलत,
किसी की हसरतों ,को यों तोड़ना ,गलत, 

अपने फैसलों पर, मूंह यों मोड़ना , गलत,
गलतियों पर गलतियां, यों जोड़ना, गलत,

इतनी गलतियां हुजूर,कोई क्यों ही निभाएं?
इतना ही नहीं ,चाहते उस पर मुस्काएं,

अपना काट कालेजा तुम ,पत्थर भरें हो!
उम्मीद हमसे भी , ये  ही करें हों, 

काट कालेजा, हां , पत्थर ही भरें हो!
काहे अड़े हो ? जनाब , काहे अड़े हो?

"सरोज"

 

Sunday, October 1, 2023

SPRING




Spring

O Spring! thou hast come, Herald of life,
Dispelling darkness with thy radiant light.

With carefree spirit and unfettered might,
Thou piercest clouds, a dazzling, welcome sight.

New leaves and blossoms sprout from earth's embrace,
Fresh life and vigor fill the air with grace.

Spring's joyous dance, a vibrant spectacle,
Awakens nature with its gentle spell.

Bees, toads, songbirds, all sing thy praise,
While peacock's vibrant plumage dances in the grace.

Spring's enchanting beauty, pure and true,
Enraptures all, both old and new,

O Spring! the King of Seasons, we adore thee,
For all ,the gifts of life thou bestowest so freely.

"Saroj"

Saturday, September 30, 2023

One life to live!


One life to live!

The journey of life is long and hard,
But with the right mindset, you'll never fall apart.
Thoughts and words are powerful things.
Choose them wisely , it's a gift for human being.

The path will not always be clear.
With courage and determination, you'll get there.
There will be obstacles along the way.
Don't let distract youself from goals & don't get carried away.

The destination may be far to reach,
Never give up,how tough, it may seems.
Keep moving forward and never creep.
And you'll eventually full fill all your dreams.

Wednesday, September 27, 2023

मेरे हितैषी !

मेरे हितैषी! आ गए मेरे द्वार !  चलों करें स्वागत सत्कार !
बढ़ा होगा तुम्हारी वाणी का श्रंगार ! जाने हम, पैनी धार !
बता दूं, एक बेचारा ,था  हारा ! खुल्ले आम गया मारा !
जो कर गए, न था गंवारा ! चूंकि समय संग गुजारा !
तुम काज अपना संवारने, सब गवाएं ! दंग, देख देख चकराए!  
डाले आंखों में आंखें, घंटो बतियाना! दिलो के राज सुलझाना!
हमसे हमारा बन सुध ले जाना! देख मगन मगन मुसकाना !

हैरान था, रंग इंद्रधनुषी देख कर, कैसे जाता यकीन कर !
मुझ में, ज्वालामुखी सा, जो सुलगाया! लावा बहुत बहता पाया !
संयम में जो आते, हमे समय लगा! जाने कैसे थी दशा !
कैसे जाने? दूजो संग पुल बनाए! सबमें थे तुम्हे पाए !
शनै शनै ,सब समझ, थे पाए! लालच थे, तुम्हे भरमाएं !
जीवन फिर भी चल निकला ही! ह्रदय सुमन खिला ही ! 
अब लो फिर गाते-गुनगुनाते हैं ! स्याह!  
 भी रंग जाते हैं !

जोड़-गुना करके हमने बनाया है! मुस्काते तुम्हे पाया है। 
आ जाओ, चाहे तुम बारम बार! हुए हम है तैयार। 
संग खेल, खेल तुम्हरा न पाएंगे। हृदय काला कर जाएंगे ? 
मेरे हितेषी! जो आओ मेरे द्वार! करेगें हम स्वागत सत्कार !
इस बार, फिर भी ही भरमा जाओगे! फिर झांसों में लाओगे !
संभल स्वयं ही हम जायेंगे! निकटता उतनी हीं निभाएंगे !
तुम मुस्काओं ढंग रंग अपने संग! क्या जाएंगे हम बन ?

गैरों सा ही हक सम्मान करेंगे! जरूर पिछला ध्यान करेगे ! 
खूब खेलों, न हम, वार करेगें ! खुद को तैयार करेंगे !
तुम चहक चहक मुस्काओं आओ जाओ ! स्वागत सत्कार बस पाओ।
मेंरे हितैषी आ ही गए द्वार, करने फिर अंखियां चार!
मेरे हितैषी खूब चाहे आओ जाओ , बारम बार स्वागत पाओ!
मेरे हितैषी, खुल्ले है मेरे द्वार। बताओ क्या है दरकार !
मेरे हितैषी, कौन सा बेमिसाल जाल, चलो दिखाओ करतब कमाल!
   "सरोज"

Tuesday, September 26, 2023

माफ़ी मिल रही हर बार है, इतनी ! क्यों-कर, ये जुर्रत बार बार है?

ये यकीन और उम्मीद की बात है,
पर घायल ही दोनो साथ साथ है,
इस इश्क़. को जाने अनजाने आज़माया है,
इसका अंदाज़ जुदा जुदा ही पाया है,
 गुनहगार है जो की फ़र्क जानता है,
खुद को ग़ुलामी से अलहदा मानता है,
इंतज़ार का ये शायद कायल भी है,
रहता जो दिन रात घायल भी है,

माफ़ी मिल रही हर बार है, इतनी ! क्यों-कर, ये जुर्रत बार बार है?

सवालों पर सवाल से दग रहे हैं,
गोली बारुद बम से फट रहे है ,
हर बार माफ़ी का क्यों तलबगार है,
क्यों सब्र पर इसके इतना एतबार है,
फ़ेहरिस्त में कहाँ नाम लिखा लाया है,
ऐसा कौन सा हुनर हासिल पाया है,
कौन सा एहसान ऐसा चुकाया है,
रात दिन ही जो, यों तड़पाया है,

माफ़ी मिल रही हर बार है, इतनी !  क्यों-कर, ये जुर्रत बार बार है?

राह पर राहगीर बढ़े जा रहे हैं,
इसे ज़िद के कौड़े पड़े जा रहे है,
इसे मुठ्ठी में बांधने की ख़्वाहिश क्यों है,
इसकी इतनी आज़माइश क्यों है,
न इसे धन दौलत में मज़ा आता है, 
ये तो जज़्बांतो  से भरा जाता है,
करवट कर गया जो मुड ना आएगा,
देखना दुर्भर दौबारा इसका हो जाएगा,

माफ़ी मिल रही हर बार है, इतनी !  क्योंकर, ये जुर्रत बार बार है?

धुन में अपनी ये गुना जा रहा है,
सपने सजीले से बना जा रहा है,
अकेले चल चल मज़बूत हो रहा है,
ना समझो अपना वज़ूद खो रहा है,
ख़ौफ़ तो तनहाई से कतई नहीं है,
तनहाई इसके लिए और भी सही है,
शायद कुछ नई मंज़िल इसे पानी है,
शायद देर भी नहीं , न हैरानी है!

माफ़ी मिल रही हर बार है, इतनी ! क्यों-कर, ये जुर्रत बार बार है?
  
"सरोज"


Sunday, September 24, 2023

बेचारी नहीं , मैं नारी हूँ, अपने आप पर ज़रा भारी हूं !


रंभा , अंबा, भगिनी, आत्मजा, सब ही में तो मुझको पाते हो !
सभी रूपों में, तुम समर्पित, क्यों मुझको ही उलझाते हो ! 
क्या दे सकते मुझको तुम, अखियाँ तक तो तुम चुराते हो ।
मेंरे आंचल -आंगन की खुशियाँ, सौदा तक कर, गिनवाते हो! 

बेचारी नहीं ,मैं नारी हूँ, अपने आप पर ज़रा भारी हूं !

एक के नखरें, सभी सर -आखों, बात दूजी की टाल न पाते हो !
तीजी के सपनों संग बंध जाते, चौथी के अश्रु अखियों लाते हो !
मुझ संग बंध, ढंग रंग कैसा ये ? क्या विराटता से खोफ्त खाते हो !
सबक सभी तानों में बरबस, सबब सारे गिना ही जाते हो !

बेचारी नहीं, मैं नारी हूँ, अपने आप पर ज़रा भारी हूं !

समझा स्वयं कभी, आंचल-आंगन बोझ नहीं, ये तक समझ न पाते हो!
स्वरूप को मेरे ढका छिपा, तुम तो, स्वयं ही, स्वयं में घबराते हो !
क्या है ये ! मुझको पाकर भी तुम, दूरी मुझसे बना पाते हो ? 
मैं मजबूर नहीं ,ये तक तो मंजूर नहीं, सुख अपने हाथों जला जाते हो !

बेचारी नहीं मैं नारी हूँ, अपने आप  पर ज़रा भारी हूँ।

टाला दशको तक जाने कैसे, लगती आज तो मैं एक बीमारी हूँ।
सिसकियों तक रोती जाती, रुल जाती, आज तक , नहीं हारी हूँ। 
और जो टाला मुझको गौरिया भी मैं ,चाहे वही खुटे वाली ,जी, तुम्हारी हूं !
मोह मोह में डूबी सी ,अपनी ही रूह राख में लिपटी, एक चिंगारी हूं !

बेचारी नहीं मैं नारी हूँ, अपने आप  पर ज़रा भारी हूँ।

मेरे शब्दों की मार सहो ना, बस इतनी तैयारी कर पाते हो !
मेरी नज़रों से क्या कहोगे खुद को क्या समझाते हो !
तुम संघ बंधन, है सर्वस्व त्यागा, क्या ये समझ न पाते हो ! 
कैसे पा पाते, तुम तुच्छ भी मुझको, वहम में जीते जाते हो !

बेचारी नहीं, मैं नारी हूं,ना आजमाना ,यकीनन पड़ती बहुत भारी हूं !

"सरोज"


Saturday, September 23, 2023

हे सीते ! इस युग में ,फिर से उनको ,मत वर आना ।

हे सीते ! इस युग में ,फिर से उनको ,मत वर आना ।
जो तुमको खोजने आएं , राम जी ,खुद ही , 'ना' कर जाना।


क्योकि ,एक बार फिर पटेगा, हीय धरा का।
होगा बेबस ही, फिर तुमको , उनमें धंस जाना।

कहां पता था, पहले तुमको ,खुशी खुशी ही होगा वन जाना।
युद्ध में जीत ,तुम्हे जो पाएंगें, उलटे पाव भी, पड़ेगा वन आना।

हे जानकी! मर्यादा तो ,वो फिर भी ! ही निभाएगें।
लव, कुश इस युग में भी, वन वन भटकने जाएंगे?

मात - पिता का प्रेम, फिर भी ,ना वों पा पाएगें !
हां ,लिए होंगें तुमने , जन्म जनमों के फेरे, उनसे!

हे वैदही ! वो बेचारे ! दो पाटो में फिर पिस जाएगें !
हे जानकी! वो अभागे! दो पाटो में फिर पिस जाएगें !

हे सीते ! राम तो आवश्यक ही खोजने तुमको आएंगे ।
पर कलयुग में , भी  क्या जरूरी ,   तुमको पा ही पाएगे !

"सरोज"

धर यकीं, होता समझाना, पगले ! मत घबराना!

हों यकीं , इरादों पर जहां ,
हार ,हौसलों से, बड़ी कहां ,
दिल को खुद ही, पड़ता बताना!
पास है मंजिल,  कैसा घबराना?

धर यकीं, होता समझाना, पगले ! मत घबराना!

कोल्हु के बैल सा पिसे, चाहे रात दिन,
काटेगा, संकट सारे, अपने गिन गिन !
जब सब, फ़िर रहें हो,  यूं ही भटक ,
तू रह,  समर्पित,  राह अपनी पकड़ !

धर यकीं, होता समझाना, पगले ! मत घबराना!

चाल चला, वो दूजे को काटे, गिरा मरा !
भाए सबको स्वार्थ, दुलारा भी ,रहे बना!
खुद को, संभालना, दे दूजे को बाजू बढ़ा!
पूर्ण प्रयासों से जड़ा,रह इरादों पर खड़ा

धर यकीं, होता समझाना, पगले ! मत घबराना!

"सरोज "

Monday, September 18, 2023

ये आग़ाज़ ए हिंद , क्या कहिए !


सुंदर सुसंस्कृती आज भी, इसका वर्णन है, 
आज भी लिहाज़ में "मैं ,आप, और हम है"!

पिता आज भी, वही टीन वाला ही खप्पर है,
धूल, धूप से सना, सर्वस्व लुटाने खड़ा, तत्पर है!

माँ आज भी वजूद, खुशी खुशी ही खो जाती है,
चार दाने बांट, ऐसे ही, वह भूखी ही सो जाती है!

मुसीबत में गैर से आज भी, सलाह मिल ही जाती है,
आप दिल तो खोलिए , यहां राह मिल ही जाती है!

विदेशी लिबाज़, खानपान, संगीत, तकनीक सब जानी है,
अहसासों, जज्बातों से भर के हम कहते, "पर दिल अपना हिंदुस्तानी है"!

 पहले मंगलयान, चंद्रयान, आदित्य, अभी तो समुद्र्यान संग बहुतों की तयारी है,
"विश्व विजई तिरंगा प्यारा", अभी तो सफर जारी है!

ये आग़ाज़ ए हिंद क्या कहिए , बेबाक परवाज़ परिंदों सी हमारी है,
अंजाम ए सफर क्या कहिए ,रफ्ता रफ्ता मंज़िलो पर फतह जारी है !

सरोज

Friday, September 15, 2023

सफ़र ए सच


बुराई,    भरमाएगी जनाब ए  आली,
हर चौराहे,    पर चाहे खाएगी गाली,
अंखियों के कौरों में,आ छुप जाएगी,
अंजाने आपकी,  प्रिय सी हो जायेगी,
तहज़ीब तो धरी की धरी रह जाएगी!

हमेशा,   परहेज रहेगा अच्छाई से,
हरगिज,     पहले तो डुबो जाएगी,
खुद को,  कुंदन करना सिखाएगी!
यकींनन यों,    रात दिन जलाएगी,
रूह को थरथर्राएगी कपकपाएगी!

खुद ही,   नज़र अंदाज कर जाओगे,
छोटे छोटे लालचो में बहक जाओगे, 
हर ओर नाटक ही नाटक तो पाओगे,
कितने मुखौटो में खुद को छिपाओगे,
आने वाली नस्ल को क्या सिखाओगे!

हसरते ,      हर शख्स पर भारी है,
बुराई से अच्छाई का सफर जारी है,
आप पर है, कितना तय कर पाओगे,
क्या कह कह ,  खुद को भरमाओगे,
क्या लेकर आए क्या लेकर जाओगे!

"सरोज"

Tuesday, September 12, 2023

सब चलता !


कागजों पर सब चलता,
बहती बयार जल चलता ,
चलने को, सब ही चलता, 
सच्चाई देख, आईना क्यों जलता!

काँव काँव कानों में चुभता,
कौवा कोकिला बन बिकता,
नयन पर पट्टी सा बंध जाता,
अंधों में काना राजा , सुहाता !

चलने को , यहां सब चलता,
अवसर से आगे, अक्सर चलता,
राह धुंधलाए बेखबर, बेसब्र चलता ,
फकीरों पर, फाकों का,कहां कहर चलता!

कब तक ,बांधेगी मुठ्ठी माटी,
मुठ्ठी ही , माटी हो जाएगी ,
असत्य, मिथ्या सब धूल खाएगी
कल्पना ज्यों ,नव्य सत्य रचाएगी !

तरूण तरंग, नवल ऊर्जा संग चलता,
नवीन आलोक में नवजीवन पलता,
नवोदित सत्य ही शाश्वत खिलता,
अबुझ प्यास,अनथक प्रयास जब चलता!

 "सरोज"

मत मान, रे मनवा


मत मान, रे मनवा, निर्बल खुद को,
अब तू ,  कैसे  खुद को  हराएं है ?

खेल तो तुझ संग ,  खेले जा चुकें,
चाहे घाव,    कितने भी गहराएं हैं!

ना होना दंग देख ,   करते ,   करें !
"अगर के मगर" सब तेरे  हवाले हैं!

करें गुटरगूं, चाहे, कोई कितना खिजाए,
काज कब, किसने किसके, संभलवाएं हैं!

चुभो के , जो जी भर भर, मुस्काएं है, 
खुद भी,  इंसा की  ही गति  पाए हैं!

हां, तू कुछ ज्यादा और जल्दी ही,
सारे किस्से ,अपने हिस्से ,उठाए हैं !

ज्ञान भी बांटेंगें  "तू तो जरिया था",
"परमात्मा ही सभी को संभाले हैं"!

जब खुद पर पड़ी थी, सब भूलाएं हैं,
अपनी बारी, खूब हाय हाय मचाएं हैं।

मत मान, रे मनवा ,निर्बल खुद को,
मन हारे तो, सब कुछ ही हराएं हैं! 

"सरोज"

Thursday, September 7, 2023

घरौंदा


कभी तय किया था एक आशियां बनाना
चाह थी सप्रेम ख्वाहिशों से उसे सजाना
गहरी अज़ीज़ हसरतें थी पाली मैंने
जी हां,एक घरौंदा चाहा था बनाना मैंने

अपनी ख्वाहिशों का हों जो आसमान 
नहीं होता किसी और पर छोड़ना आसान 
समय तन मन , सब से सजाया मैंने
जी हां , एक आशियां था बनाया मैंने

कई आंधियां आई , मिटाने जिसे
रूह से कलप, लिपट के संभाला मैंने
हौसलों की कमानी पर ,था टिकाया मैंने
जी हां, एक घरौंदा था सजाया मैंने

लगा , हुआ जब जा रहा जर्जर
चाहा था, तब तब बचाना मर मर
आज भी रखा हुआ ,संभाला मैंने
जी हां, एक आशियां बसाया मैंने

एक आस पर बचा है जो
एक विश्वास पर टिका है जो 
कल का क्या ,जो हो सो हो
एक घरौंदा, यों ,जी भर निभाया मैंने

सरोज

Sunday, February 5, 2023

निश्चित ना

तने हुए सौ सौ सैन , अन्दर तक ताकते “नैन " मिलेंगे !
ऊंचें सुर साथ, चैताते से जाने, कैसे कैसे, कौन मिलेंगें ?
किसने कहा नहीं पड़ेगा, "हाँ "  का भी बोझा उठाना !
हाँ,  यदि ना मानें मन , तू निश्चित "ना " ही कर जाना !
 
भ्रम हैं, तेरी "हाँ " पर कोई, आसान तेरे रस्ते, ही कर जाता !
भ्रम है,  तेरी "ना " पर कोई, जान तेरी तंग, ही कर जाता !
" हाँ " पर, कंधे झुका, मुँह लटका, जाने कितनी हाँ खड़ी है !
"ना " खौलाता खूं , खुले आखें, दिमाग, खुद पर आस बड़ी है!
 
चुनना सोझ समझ , खुद के पैरो से ही, रास्ता तो तेरा कटेगा !
"हाँ " की कितनी अंधेरी गलियां ? क्या तेरा अंधेरा भी हटेगा?
हो "ना" से कुछ कमाल, बेमिसाल मंजिल तय, तो कर जाना !
हाँ, यदि, ना मानें मन ,  तू निश्चित "ना",  ही कर  जाना !
                 " सरोज "
 

Thursday, February 2, 2023

चलता चल !

सोच सही ,    बात सही ,   साथ सही !
हो जाएगी, जीवन की , हर साध सही !
राह नई,   राहगीर  नहीं,   चलता चल !
डगमगाती डगर ,  कई ,   चलता चल !
 बल  खाता ,  मुसकाता , चलता चल !
  
       सोच सही ,  बात सही ,  साथ सही !
      हो जाएगी, जीवन की, हर साध सही!   
      अरे तू चलता चल !

कई अंधेरे ,आज मिलेंगे ,  उजला कल !
अश्रु-सने कई काज मिलेंगे, करता चल !
अपनों के भी राज मिलेंगे,  चलता चल !
परायों के भी साथ मिलेंगे,  चलता चल !
नहीं थमेगा, समय कटेगा ,  चलता चल !
       
       सोच सही ,  बात सही ,  साथ सही !
      हो जाएगी, जीवन की, हर साध सही!   
      अरे तू चलता चल !

रात गई ,  ना   हालात  सही,  चलता चल !
नैन  भर आए , दिल घबराए , चलता चल !
उम्मीदें-हौसला, नया मिलेगा, चलता चल !
बढ़ाता , कोई हाथ  मिलेगा,  चलता  चल !
रह जाएंगे,  धरे  दख़ल, बस, चलता चल !

      सोच सही ,  बात सही ,  साथ सही !
      हो जाएगी, जीवन की, हर साध सही!   
      अरे तू चलता चल !

सफर है तेरा,   मंजिल तेरी , चलता चल !
आड़़ी  टेढ़ी , हांक मिलेंगीं ,  चलता चल  !
अभि तो, बन्दर-बांट मिलेंगी, चलता चल !
जैसी  मिले  , डगर   मगर  ,  चलता चल !
ना  करना,  तू  टाल मटोल ,  चलता चल !
    
      सोच सही ,  बात सही ,  साथ सही !
      हो जाएगी, जीवन की, हर साध सही!   
      अरे तू चलता चल !

मंजिल ,और भी पास मिलेगी , चलता चल !
कल नहीं ,तो आज  मिलेगी ,   चलता चल !
एक नहीं , कई साथ मिलेगी ,  चलता  चल !
धर   विश्वास,   पूरा   अटल ,   चलता चल !
चाहे   धीमे ,  पर बढ़ा कदम,   चलता चल ! 

      सोच सही ,  बात सही ,  साथ सही !
      हो जाएगी, जीवन की, हर साध सही!   
      अरे तू चलता चल !


Sunday, January 29, 2023

समर - साधना

जिसमें है उन्मुक्त , उन्माद बहुत !

जिसमें है अवरोध, अपवाद बहुत !

वही  समर - साधना का ध्योतक !

वही नापे घाटियों को शिखर तक ! 


नीरसता ही तो दे रस का हिसाब  !

कड़वाहट ही दे मीठे को अहसास !

समृद्धि से सुख,  सौभाग्य,  मित्र  ! 

प्रतिकूलता में निखरते सिर्फ दृढ़  !


त्रासदी में अनुभव  अमुल्य आते !

तूफां में चट्टानों से,  जो डट जाते !

संकटो  के  सागर वही तर जाते !

दुश्मन ,दुःख, दुर्भाग्य ही सीखाते !


पंगु पशु गूंगा न, डरे कहाँ सिंह गर्जना !

अतुल आत्मविश्वास ,कर्म,श्रम ,क्षमता !

करें प्रतिकूल परिस्थितियों का स्वामित्व !

तभी संभव संघर्ष , अधिकृत आधिपत्य !

" सरोज "




Thursday, January 26, 2023

क्रांति की डगर, आज़ादी का सफर

भाग: एक

 व्यापार की आड़, बनाकर आए थे कहानी !
 सौलहा सौ में जब भेजी, वो ब्रितानी रानी ,
 ईस्ट इंडिया कंपनी यहाँ, अपने हिन्दूस्तान !
 सर्वस्व ही लूटा,  उसने प्यारा भारत महान ! 

 मुंदी आखें जब ज़फ़र की, अट्ठारह सौ बावन!
 आखरी शाह मुगलई, हुआ यूं साम्राज्य पतन! 
 कर के आर्थिक-राजनैतिक धरती का दोहन ,
थामे सत्ता की कमान, बने  ये अंग्रेज भगवन !

 अठारह सौ सत्तावन की क्रांति जब बनी थी,
 अपनी आजादी की पहली - पहल अँगड़ाई ।
 मंगल पार्न्डे बने नायक,  ऐसी हुंकार लगाई !
 इतिहास में  वह “सैनिक विद्रोह " कहलाई !

 उत्तर से मध्य , मध्य से पश्चिम श्रेत्र में फैले , 
 घनघोर जन-असंतोष का था बस परिणाम ! 
 धार्मिक ,सैनिक और आर्थिक था , विद्रोह !
 गया कुचला , बना, प्रथम स्वतंत्रता-संग्राम !


 बिना लड़े ना दूं  झांसी, यूं वीर गति जो ठानी !
 किए दाँत खट्टे ब्रितानी,  थी वीरांगना मरदानी!
 सोलह जून अठ्ठावन, दें गयी अपनी  कुरबानी!
 चमक उठ्ठी थी तलवार, वो झांसी वाली रानी !

                    "सरोज " 

Tuesday, January 24, 2023

ऋतुपति






ऋतुपति


हे ,विमल ,वासंती विप्लव ! तिमिर को तार ,
तुम आए !

स्वच्छंद, स्वतंत्र स्फूर्ति से,घनघोर घटा के,
 पार तुम आए !

नव पल्लव, नव कुसुम,नूतन, नवीन,
 धरा धार तुम आए !

स्वागत सत्कार, झंझावातों से ,शुभ-सुभग, 
साकार तुम लाए ! 

कलरव करते  मिलिंद, शकुंत, सारिका, 
साथ तुम लाए !

मेहप्रिय के नृत्य, इंद्रधनुषी आभा अद्वितीय, 
संग सारंग लाए !




"सरोज "




Tuesday, January 17, 2023

अंतर्नाद

बदस्तूर बाहर बहुत सन्नाटा किन्तु सनसनी  अन्तर्मन्  शोर मचाएगी ।
कोई कितने कतरने पंख आए , हदें हौसलों  की  खुद ब खुद  खुल जाएंगी ।
दाव पेच  कितने लगा ले, कोई  कठपुतलियां कितनी नचा ले।
सबका सिद्ध समय की कसौटी,  कच्चा चिट्ठा कर जाएगी ।

                                      'सरोज' 

Friday, January 13, 2023

जगमग जग !

ना  झटपट झूट झांकते,  ना  दे दिखाई नयन नीर ।
न दूं दुहाई ,क्यों कोई सफाई , मेरी पीड़ा मेरे  पीर ।
न समय सही है, काम कई है , मुझको तो निपटाने ।
मुझको मेरा पथ, पथ्य पता है, तू तेरा सत्य कथ्य जाने !

हास में परिहास में, अट्टाहसों के अहसास में,
कई कहीं  मरे हैं, कई कहीं गढ़ें है, तेरे इतिहास में !
हां चढ़ते को जरूर,  तू  तेरा   करता नमन है ।
तेरी सुध लू ? मेरे सर बीड़ा मेरे कामों का क्या कम है !

ललचाएगा तू भरमाएगा तू ,जाने कैसे कैसे इतराएगा ।
न रातों को  नींद लगी है, फिर दिन का सुकुन भी जाएगा ।
तेरे चक्कर में पड़कर,  इमान न मेरा डगमगाएगा।
इसमे  ना  लाग लपेट है,   मेरा चेहरा बतलाएगा ।

                                 ' सरोज '
    
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विजयी भव! यशस्वी भव!

धर रूप नए नए डर डराने रोज द्वार तेरे आएगा ।

कभी धीरे से कभी जोर से सांकल भी खटखटाएगा ।                                       

कान से सुनाई देने लगे, घटती बढती धड़कने,

दिल पर हाथ रख कर, दिल दिलासा मंगाएगा ।

पगले ! कब तक ओट मे डरा सहमा सा घबराएगा ।                                            

सब्र से सारी विधा जुटा , जब तत्पर तुणीर तू सजाएगा ।
एक एक डर को भेद निश्चित ही आएंगें।

सुलगते सटीक समय से  निकलेंगें भी ,

तीर तेरे तेरी विजय पताका ,आवश्यक ही फरहाऐगें ।

                        'सरोज'

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Thursday, January 12, 2023

विजयी भव!


लाल लेखनी  लिखे, लो , काल के कपाल कल ।
आज धरा को चीर कर, बीज बोना होके सबल ।
खूं में तैरता तेरे, पूरा उबाल होना चाहिए।
उच्छले किस्मताई सिकका, जब जोश जड़ा होश पूरा होना चाहिए ।
                          ' सरोज '





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FEATURED POST

लड़खड़ाते से कदम