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Friday, January 13, 2023

विजयी भव! यशस्वी भव!

धर रूप नए नए डर डराने रोज द्वार तेरे आएगा ।

कभी धीरे से कभी जोर से सांकल भी खटखटाएगा ।                                       

कान से सुनाई देने लगे, घटती बढती धड़कने,

दिल पर हाथ रख कर, दिल दिलासा मंगाएगा ।

पगले ! कब तक ओट मे डरा सहमा सा घबराएगा ।                                            

सब्र से सारी विधा जुटा , जब तत्पर तुणीर तू सजाएगा ।
एक एक डर को भेद निश्चित ही आएंगें।

सुलगते सटीक समय से  निकलेंगें भी ,

तीर तेरे तेरी विजय पताका ,आवश्यक ही फरहाऐगें ।

                        'सरोज'

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लड़खड़ाते से कदम