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Wednesday, September 27, 2023

मेरे हितैषी !

मेरे हितैषी! आ गए मेरे द्वार !  चलों करें स्वागत सत्कार !
बढ़ा होगा तुम्हारी वाणी का श्रंगार ! जाने हम, पैनी धार !
बता दूं, एक बेचारा ,था  हारा ! खुल्ले आम गया मारा !
जो कर गए, न था गंवारा ! चूंकि समय संग गुजारा !
तुम काज अपना संवारने, सब गवाएं ! दंग, देख देख चकराए!  
डाले आंखों में आंखें, घंटो बतियाना! दिलो के राज सुलझाना!
हमसे हमारा बन सुध ले जाना! देख मगन मगन मुसकाना !

हैरान था, रंग इंद्रधनुषी देख कर, कैसे जाता यकीन कर !
मुझ में, ज्वालामुखी सा, जो सुलगाया! लावा बहुत बहता पाया !
संयम में जो आते, हमे समय लगा! जाने कैसे थी दशा !
कैसे जाने? दूजो संग पुल बनाए! सबमें थे तुम्हे पाए !
शनै शनै ,सब समझ, थे पाए! लालच थे, तुम्हे भरमाएं !
जीवन फिर भी चल निकला ही! ह्रदय सुमन खिला ही ! 
अब लो फिर गाते-गुनगुनाते हैं ! स्याह!  
 भी रंग जाते हैं !

जोड़-गुना करके हमने बनाया है! मुस्काते तुम्हे पाया है। 
आ जाओ, चाहे तुम बारम बार! हुए हम है तैयार। 
संग खेल, खेल तुम्हरा न पाएंगे। हृदय काला कर जाएंगे ? 
मेरे हितेषी! जो आओ मेरे द्वार! करेगें हम स्वागत सत्कार !
इस बार, फिर भी ही भरमा जाओगे! फिर झांसों में लाओगे !
संभल स्वयं ही हम जायेंगे! निकटता उतनी हीं निभाएंगे !
तुम मुस्काओं ढंग रंग अपने संग! क्या जाएंगे हम बन ?

गैरों सा ही हक सम्मान करेंगे! जरूर पिछला ध्यान करेगे ! 
खूब खेलों, न हम, वार करेगें ! खुद को तैयार करेंगे !
तुम चहक चहक मुस्काओं आओ जाओ ! स्वागत सत्कार बस पाओ।
मेंरे हितैषी आ ही गए द्वार, करने फिर अंखियां चार!
मेरे हितैषी खूब चाहे आओ जाओ , बारम बार स्वागत पाओ!
मेरे हितैषी, खुल्ले है मेरे द्वार। बताओ क्या है दरकार !
मेरे हितैषी, कौन सा बेमिसाल जाल, चलो दिखाओ करतब कमाल!
   "सरोज"

Tuesday, September 26, 2023

माफ़ी मिल रही हर बार है, इतनी ! क्यों-कर, ये जुर्रत बार बार है?

ये यकीन और उम्मीद की बात है,
पर घायल ही दोनो साथ साथ है,
इस इश्क़. को जाने अनजाने आज़माया है,
इसका अंदाज़ जुदा जुदा ही पाया है,
 गुनहगार है जो की फ़र्क जानता है,
खुद को ग़ुलामी से अलहदा मानता है,
इंतज़ार का ये शायद कायल भी है,
रहता जो दिन रात घायल भी है,

माफ़ी मिल रही हर बार है, इतनी ! क्यों-कर, ये जुर्रत बार बार है?

सवालों पर सवाल से दग रहे हैं,
गोली बारुद बम से फट रहे है ,
हर बार माफ़ी का क्यों तलबगार है,
क्यों सब्र पर इसके इतना एतबार है,
फ़ेहरिस्त में कहाँ नाम लिखा लाया है,
ऐसा कौन सा हुनर हासिल पाया है,
कौन सा एहसान ऐसा चुकाया है,
रात दिन ही जो, यों तड़पाया है,

माफ़ी मिल रही हर बार है, इतनी !  क्यों-कर, ये जुर्रत बार बार है?

राह पर राहगीर बढ़े जा रहे हैं,
इसे ज़िद के कौड़े पड़े जा रहे है,
इसे मुठ्ठी में बांधने की ख़्वाहिश क्यों है,
इसकी इतनी आज़माइश क्यों है,
न इसे धन दौलत में मज़ा आता है, 
ये तो जज़्बांतो  से भरा जाता है,
करवट कर गया जो मुड ना आएगा,
देखना दुर्भर दौबारा इसका हो जाएगा,

माफ़ी मिल रही हर बार है, इतनी !  क्योंकर, ये जुर्रत बार बार है?

धुन में अपनी ये गुना जा रहा है,
सपने सजीले से बना जा रहा है,
अकेले चल चल मज़बूत हो रहा है,
ना समझो अपना वज़ूद खो रहा है,
ख़ौफ़ तो तनहाई से कतई नहीं है,
तनहाई इसके लिए और भी सही है,
शायद कुछ नई मंज़िल इसे पानी है,
शायद देर भी नहीं , न हैरानी है!

माफ़ी मिल रही हर बार है, इतनी ! क्यों-कर, ये जुर्रत बार बार है?
  
"सरोज"


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लड़खड़ाते से कदम