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Thursday, September 7, 2023

घरौंदा


कभी तय किया था एक आशियां बनाना
चाह थी सप्रेम ख्वाहिशों से उसे सजाना
गहरी अज़ीज़ हसरतें थी पाली मैंने
जी हां,एक घरौंदा चाहा था बनाना मैंने

अपनी ख्वाहिशों का हों जो आसमान 
नहीं होता किसी और पर छोड़ना आसान 
समय तन मन , सब से सजाया मैंने
जी हां , एक आशियां था बनाया मैंने

कई आंधियां आई , मिटाने जिसे
रूह से कलप, लिपट के संभाला मैंने
हौसलों की कमानी पर ,था टिकाया मैंने
जी हां, एक घरौंदा था सजाया मैंने

लगा , हुआ जब जा रहा जर्जर
चाहा था, तब तब बचाना मर मर
आज भी रखा हुआ ,संभाला मैंने
जी हां, एक आशियां बसाया मैंने

एक आस पर बचा है जो
एक विश्वास पर टिका है जो 
कल का क्या ,जो हो सो हो
एक घरौंदा, यों ,जी भर निभाया मैंने

सरोज

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