मत मान, रे मनवा, निर्बल खुद को,
अब तू , कैसे खुद को हराएं है ?
खेल तो तुझ संग , खेले जा चुकें,
चाहे घाव, कितने भी गहराएं हैं!
ना होना दंग देख , करते , करें !
"अगर के मगर" सब तेरे हवाले हैं!
करें गुटरगूं, चाहे, कोई कितना खिजाए,
काज कब, किसने किसके, संभलवाएं हैं!
चुभो के , जो जी भर भर, मुस्काएं है,
खुद भी, इंसा की ही गति पाए हैं!
हां, तू कुछ ज्यादा और जल्दी ही,
सारे किस्से ,अपने हिस्से ,उठाए हैं !
ज्ञान भी बांटेंगें "तू तो जरिया था",
"परमात्मा ही सभी को संभाले हैं"!
जब खुद पर पड़ी थी, सब भूलाएं हैं,
अपनी बारी, खूब हाय हाय मचाएं हैं।
मत मान, रे मनवा ,निर्बल खुद को,
मन हारे तो, सब कुछ ही हराएं हैं!
"सरोज"
👍 ,सही हैसबको अपना ध्यान खुद ही रखना। पड़ता है
ReplyDeletenotable lines
ReplyDeletevery good attempt
ReplyDeletesunder rachna
ReplyDeletekeep the good work going
ReplyDeletevah vah
ReplyDelete