सुंदर सुसंस्कृती आज भी, इसका वर्णन है,
आज भी लिहाज़ में "मैं ,आप, और हम है"!
पिता आज भी, वही टीन वाला ही खप्पर है,
धूल, धूप से सना, सर्वस्व लुटाने खड़ा, तत्पर है!
माँ आज भी वजूद, खुशी खुशी ही खो जाती है,
चार दाने बांट, ऐसे ही, वह भूखी ही सो जाती है!
मुसीबत में गैर से आज भी, सलाह मिल ही जाती है,
आप दिल तो खोलिए , यहां राह मिल ही जाती है!
विदेशी लिबाज़, खानपान, संगीत, तकनीक सब जानी है,
अहसासों, जज्बातों से भर के हम कहते, "पर दिल अपना हिंदुस्तानी है"!
पहले मंगलयान, चंद्रयान, आदित्य, अभी तो समुद्र्यान संग बहुतों की तयारी है,
"विश्व विजई तिरंगा प्यारा", अभी तो सफर जारी है!
ये आग़ाज़ ए हिंद क्या कहिए , बेबाक परवाज़ परिंदों सी हमारी है,
अंजाम ए सफर क्या कहिए ,रफ्ता रफ्ता मंज़िलो पर फतह जारी है !
सरोज