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Saturday, September 23, 2023

धर यकीं, होता समझाना, पगले ! मत घबराना!

हों यकीं , इरादों पर जहां ,
हार ,हौसलों से, बड़ी कहां ,
दिल को खुद ही, पड़ता बताना!
पास है मंजिल,  कैसा घबराना?

धर यकीं, होता समझाना, पगले ! मत घबराना!

कोल्हु के बैल सा पिसे, चाहे रात दिन,
काटेगा, संकट सारे, अपने गिन गिन !
जब सब, फ़िर रहें हो,  यूं ही भटक ,
तू रह,  समर्पित,  राह अपनी पकड़ !

धर यकीं, होता समझाना, पगले ! मत घबराना!

चाल चला, वो दूजे को काटे, गिरा मरा !
भाए सबको स्वार्थ, दुलारा भी ,रहे बना!
खुद को, संभालना, दे दूजे को बाजू बढ़ा!
पूर्ण प्रयासों से जड़ा,रह इरादों पर खड़ा

धर यकीं, होता समझाना, पगले ! मत घबराना!

"सरोज "

3 comments:

  1. Anonymous9/23/2023

    बहुत खूब

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  2. Anonymous9/23/2023

    वाह वाह जी,कितना अच्छा लिखा है

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  3. Anonymous9/23/2023

    Ohhh wow nice poem

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