ऋतुपति
हे ,विमल ,वासंती विप्लव ! तिमिर को तार ,
तुम आए !
स्वच्छंद, स्वतंत्र स्फूर्ति से,घनघोर घटा के,
पार तुम आए !
नव पल्लव, नव कुसुम,नूतन, नवीन,
धरा धार तुम आए !
स्वागत सत्कार, झंझावातों से ,शुभ-सुभग,
साकार तुम लाए !
कलरव करते मिलिंद, शकुंत, सारिका,
साथ तुम लाए !
मेहप्रिय के नृत्य, इंद्रधनुषी आभा अद्वितीय,
संग सारंग लाए !
"सरोज "