जिसकी जिद्द का ना होता था कोई ओर छोर,
प्रेम अंकुरण हुआ, कैसे नाचा मग्न मन मोर,
पाषाण मन बरसी, खिलखिलाहटो की झरी,
पहले ही दिन से हो गई वो तो पापा की परी!
जरा सी खरोच और हो जाते है नयन नम,
वही है , जिससे ना सुनी जाती थी, बातें चन्द,
अब , एक एक बात का हिसाब रखने लगा,
मृदुल , सुभाषी हुआ , कई रंग बदलने लगा!
सिह गरजना को आहटो की खबर होने लगी,
वंचित था , जो भावों से , उसे परवाह होने लगी,
तेरे रंग ही रंगा, वो अब रंगो में सराबोर है,
पल पल पर्व, इंद्रधनुषी छठा हर ओर है!
" सरोज "