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Sunday, January 29, 2023

समर - साधना

जिसमें है उन्मुक्त , उन्माद बहुत !

जिसमें है अवरोध, अपवाद बहुत !

वही  समर - साधना का ध्योतक !

वही नापे घाटियों को शिखर तक ! 


नीरसता ही तो दे रस का हिसाब  !

कड़वाहट ही दे मीठे को अहसास !

समृद्धि से सुख,  सौभाग्य,  मित्र  ! 

प्रतिकूलता में निखरते सिर्फ दृढ़  !


त्रासदी में अनुभव  अमुल्य आते !

तूफां में चट्टानों से,  जो डट जाते !

संकटो  के  सागर वही तर जाते !

दुश्मन ,दुःख, दुर्भाग्य ही सीखाते !


पंगु पशु गूंगा न, डरे कहाँ सिंह गर्जना !

अतुल आत्मविश्वास ,कर्म,श्रम ,क्षमता !

करें प्रतिकूल परिस्थितियों का स्वामित्व !

तभी संभव संघर्ष , अधिकृत आधिपत्य !

" सरोज "




Thursday, January 26, 2023

क्रांति की डगर, आज़ादी का सफर

भाग: एक

 व्यापार की आड़, बनाकर आए थे कहानी !
 सौलहा सौ में जब भेजी, वो ब्रितानी रानी ,
 ईस्ट इंडिया कंपनी यहाँ, अपने हिन्दूस्तान !
 सर्वस्व ही लूटा,  उसने प्यारा भारत महान ! 

 मुंदी आखें जब ज़फ़र की, अट्ठारह सौ बावन!
 आखरी शाह मुगलई, हुआ यूं साम्राज्य पतन! 
 कर के आर्थिक-राजनैतिक धरती का दोहन ,
थामे सत्ता की कमान, बने  ये अंग्रेज भगवन !

 अठारह सौ सत्तावन की क्रांति जब बनी थी,
 अपनी आजादी की पहली - पहल अँगड़ाई ।
 मंगल पार्न्डे बने नायक,  ऐसी हुंकार लगाई !
 इतिहास में  वह “सैनिक विद्रोह " कहलाई !

 उत्तर से मध्य , मध्य से पश्चिम श्रेत्र में फैले , 
 घनघोर जन-असंतोष का था बस परिणाम ! 
 धार्मिक ,सैनिक और आर्थिक था , विद्रोह !
 गया कुचला , बना, प्रथम स्वतंत्रता-संग्राम !


 बिना लड़े ना दूं  झांसी, यूं वीर गति जो ठानी !
 किए दाँत खट्टे ब्रितानी,  थी वीरांगना मरदानी!
 सोलह जून अठ्ठावन, दें गयी अपनी  कुरबानी!
 चमक उठ्ठी थी तलवार, वो झांसी वाली रानी !

                    "सरोज " 

Tuesday, January 24, 2023

ऋतुपति






ऋतुपति


हे ,विमल ,वासंती विप्लव ! तिमिर को तार ,
तुम आए !

स्वच्छंद, स्वतंत्र स्फूर्ति से,घनघोर घटा के,
 पार तुम आए !

नव पल्लव, नव कुसुम,नूतन, नवीन,
 धरा धार तुम आए !

स्वागत सत्कार, झंझावातों से ,शुभ-सुभग, 
साकार तुम लाए ! 

कलरव करते  मिलिंद, शकुंत, सारिका, 
साथ तुम लाए !

मेहप्रिय के नृत्य, इंद्रधनुषी आभा अद्वितीय, 
संग सारंग लाए !




"सरोज "




Tuesday, January 17, 2023

अंतर्नाद

बदस्तूर बाहर बहुत सन्नाटा किन्तु सनसनी  अन्तर्मन्  शोर मचाएगी ।
कोई कितने कतरने पंख आए , हदें हौसलों  की  खुद ब खुद  खुल जाएंगी ।
दाव पेच  कितने लगा ले, कोई  कठपुतलियां कितनी नचा ले।
सबका सिद्ध समय की कसौटी,  कच्चा चिट्ठा कर जाएगी ।

                                      'सरोज' 

Friday, January 13, 2023

जगमग जग !

ना  झटपट झूट झांकते,  ना  दे दिखाई नयन नीर ।
न दूं दुहाई ,क्यों कोई सफाई , मेरी पीड़ा मेरे  पीर ।
न समय सही है, काम कई है , मुझको तो निपटाने ।
मुझको मेरा पथ, पथ्य पता है, तू तेरा सत्य कथ्य जाने !

हास में परिहास में, अट्टाहसों के अहसास में,
कई कहीं  मरे हैं, कई कहीं गढ़ें है, तेरे इतिहास में !
हां चढ़ते को जरूर,  तू  तेरा   करता नमन है ।
तेरी सुध लू ? मेरे सर बीड़ा मेरे कामों का क्या कम है !

ललचाएगा तू भरमाएगा तू ,जाने कैसे कैसे इतराएगा ।
न रातों को  नींद लगी है, फिर दिन का सुकुन भी जाएगा ।
तेरे चक्कर में पड़कर,  इमान न मेरा डगमगाएगा।
इसमे  ना  लाग लपेट है,   मेरा चेहरा बतलाएगा ।

                                 ' सरोज '
    
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विजयी भव! यशस्वी भव!

धर रूप नए नए डर डराने रोज द्वार तेरे आएगा ।

कभी धीरे से कभी जोर से सांकल भी खटखटाएगा ।                                       

कान से सुनाई देने लगे, घटती बढती धड़कने,

दिल पर हाथ रख कर, दिल दिलासा मंगाएगा ।

पगले ! कब तक ओट मे डरा सहमा सा घबराएगा ।                                            

सब्र से सारी विधा जुटा , जब तत्पर तुणीर तू सजाएगा ।
एक एक डर को भेद निश्चित ही आएंगें।

सुलगते सटीक समय से  निकलेंगें भी ,

तीर तेरे तेरी विजय पताका ,आवश्यक ही फरहाऐगें ।

                        'सरोज'

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Thursday, January 12, 2023

विजयी भव!


लाल लेखनी  लिखे, लो , काल के कपाल कल ।
आज धरा को चीर कर, बीज बोना होके सबल ।
खूं में तैरता तेरे, पूरा उबाल होना चाहिए।
उच्छले किस्मताई सिकका, जब जोश जड़ा होश पूरा होना चाहिए ।
                          ' सरोज '





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Wednesday, January 11, 2023

परी के पापा !


जिसकी जिद्द का ना होता था कोई ओर छोर,
प्रेम अंकुरण हुआ, कैसे नाचा मग्न मन मोर,
पाषाण मन बरसी, खिलखिलाहटो की झरी,
पहले ही दिन से हो गई वो तो पापा की परी!

जरा सी खरोच और हो जाते है नयन नम,
वही है , जिससे ना सुनी जाती थी, बातें चन्द,
अब , एक एक बात का हिसाब रखने लगा,
मृदुल , सुभाषी हुआ , कई रंग बदलने लगा!

सिह गरजना को आहटो की खबर होने लगी,
वंचित था , जो भावों से , उसे परवाह होने लगी,
तेरे रंग ही रंगा, वो अब रंगो में सराबोर है,
पल पल पर्व, इंद्रधनुषी छठा हर ओर है!

  " सरोज "

नारी

📢

एक ही सांचे में उतारी,खूबियां तूने सारी 
बहु,बेटी,बहन,संगनी कमाल,एक ही क्षण सारी !
मालिक,क्या खूब करी तूने होशियारी
बना कर कायनात, चलाने रच दी नारी ! 

                       'सरोज'


                                                   
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लड़खड़ाते से कदम