व्यापार की आड़, बनाकर आए थे कहानी !
सौलहा सौ में जब भेजी, वो ब्रितानी रानी ,
ईस्ट इंडिया कंपनी यहाँ, अपने हिन्दूस्तान !
सर्वस्व ही लूटा, उसने प्यारा भारत महान !
मुंदी आखें जब ज़फ़र की, अट्ठारह सौ बावन!
आखरी शाह मुगलई, हुआ यूं साम्राज्य पतन!
कर के आर्थिक-राजनैतिक धरती का दोहन ,
थामे सत्ता की कमान, बने ये अंग्रेज भगवन !
अठारह सौ सत्तावन की क्रांति जब बनी थी,
अपनी आजादी की पहली - पहल अँगड़ाई ।
मंगल पार्न्डे बने नायक, ऐसी हुंकार लगाई !
इतिहास में वह “सैनिक विद्रोह " कहलाई !
उत्तर से मध्य , मध्य से पश्चिम श्रेत्र में फैले ,
घनघोर जन-असंतोष का था बस परिणाम !
धार्मिक ,सैनिक और आर्थिक था , विद्रोह !
गया कुचला , बना, प्रथम स्वतंत्रता-संग्राम !
बिना लड़े ना दूं झांसी, यूं वीर गति जो ठानी !
किए दाँत खट्टे ब्रितानी, थी वीरांगना मरदानी!
सोलह जून अठ्ठावन, दें गयी अपनी कुरबानी!
चमक उठ्ठी थी तलवार, वो झांसी वाली रानी !
"सरोज "