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Thursday, January 26, 2023

क्रांति की डगर, आज़ादी का सफर

भाग: एक

 व्यापार की आड़, बनाकर आए थे कहानी !
 सौलहा सौ में जब भेजी, वो ब्रितानी रानी ,
 ईस्ट इंडिया कंपनी यहाँ, अपने हिन्दूस्तान !
 सर्वस्व ही लूटा,  उसने प्यारा भारत महान ! 

 मुंदी आखें जब ज़फ़र की, अट्ठारह सौ बावन!
 आखरी शाह मुगलई, हुआ यूं साम्राज्य पतन! 
 कर के आर्थिक-राजनैतिक धरती का दोहन ,
थामे सत्ता की कमान, बने  ये अंग्रेज भगवन !

 अठारह सौ सत्तावन की क्रांति जब बनी थी,
 अपनी आजादी की पहली - पहल अँगड़ाई ।
 मंगल पार्न्डे बने नायक,  ऐसी हुंकार लगाई !
 इतिहास में  वह “सैनिक विद्रोह " कहलाई !

 उत्तर से मध्य , मध्य से पश्चिम श्रेत्र में फैले , 
 घनघोर जन-असंतोष का था बस परिणाम ! 
 धार्मिक ,सैनिक और आर्थिक था , विद्रोह !
 गया कुचला , बना, प्रथम स्वतंत्रता-संग्राम !


 बिना लड़े ना दूं  झांसी, यूं वीर गति जो ठानी !
 किए दाँत खट्टे ब्रितानी,  थी वीरांगना मरदानी!
 सोलह जून अठ्ठावन, दें गयी अपनी  कुरबानी!
 चमक उठ्ठी थी तलवार, वो झांसी वाली रानी !

                    "सरोज " 

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लड़खड़ाते से कदम