हों यकीं , इरादों पर जहां ,
हार ,हौसलों से, बड़ी कहां ,
दिल को खुद ही, पड़ता बताना!
पास है मंजिल, कैसा घबराना?
धर यकीं, होता समझाना, पगले ! मत घबराना!
कोल्हु के बैल सा पिसे, चाहे रात दिन,
काटेगा, संकट सारे, अपने गिन गिन !
जब सब, फ़िर रहें हो, यूं ही भटक ,
तू रह, समर्पित, राह अपनी पकड़ !
धर यकीं, होता समझाना, पगले ! मत घबराना!
चाल चला, वो दूजे को काटे, गिरा मरा !
भाए सबको स्वार्थ, दुलारा भी ,रहे बना!
खुद को, संभालना, दे दूजे को बाजू बढ़ा!
पूर्ण प्रयासों से जड़ा,रह इरादों पर खड़ा
धर यकीं, होता समझाना, पगले ! मत घबराना!
"सरोज "
बहुत खूब
ReplyDeleteवाह वाह जी,कितना अच्छा लिखा है
ReplyDeleteOhhh wow nice poem
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