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Thursday, June 12, 2025

"हिमालय"


निरुपम निरुत्तम ओढनी बर्फानी, है शिव जटा जल। 
धरणी धमनियों में बहता, है अनुरागी अनुपम ।

 
वज्र भी, है यह धवल कमल कोमल।
सृष्टि स्मृति, संकल्प भी, है संतुलन ।


बद्री, केदार की आरतियाँ, अमरनाथ कैलासा यह ।
बौद्ध घंटियाँ, ऋषीकेश और ऋषी समाधियाँ यह ।


तुषार सिक्त अवनि, पद्मपाणि यह। 
शुन्य अंकुरित चिर चेतना से ओ३म् तक का चरम उच्चारण यह ।


गंगा यमुना ब्रह्मपुत्र, है बहती सभी धाराएँ यह। 
जल जनक, नद-नायक, है हरयाली की शपथ यह ।


खेत-खलिहानों में रचा बसा चिरंतन आल्हाददायक यह ।
वृष्टि का पावन मेघ, कृषक की उमंगों का उमड़ता आवेग यह।

"सरोज"

 


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