ऊंचें सुर साथ, चैताते से जाने, कैसे कैसे, कौन मिलेंगें ?
किसने कहा नहीं पड़ेगा, "हाँ " का भी बोझा उठाना !
हाँ, यदि ना मानें मन , तू निश्चित "ना " ही कर जाना !
भ्रम है, तेरी "ना " पर कोई, जान तेरी तंग, ही कर जाता !
" हाँ " पर, कंधे झुका, मुँह लटका, जाने कितनी हाँ खड़ी है !
"ना " खौलाता खूं , खुले आखें, दिमाग, खुद पर आस बड़ी है!
"हाँ " की कितनी अंधेरी गलियां ? क्या तेरा अंधेरा भी हटेगा?
हो "ना" से कुछ कमाल, बेमिसाल मंजिल तय, तो कर जाना !
हाँ, यदि, ना मानें मन , तू निश्चित "ना", ही कर जाना !
" सरोज "
Vah vah
ReplyDeleteAchha Prayaas.
ReplyDeleteवाह वाद
ReplyDeleteलिखते रहो
ReplyDeleteअच्छा कहा
ReplyDeleteअच्छा कहा
ReplyDeleteBeautiful
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