"बादल आज तुम जम के बरसो"
बादल आज तुम जम के बरसो,
धरा की प्यास बुझाने बरसो,
तुम इसको अमृत से भर दो,
धरती को फिर पावन कर दो।
पहाड़ों
पर तुम घिर घिर आओ,
फट बह बह झरने बन जाओ,
तालाब तलहटी तर कर जाओ ,
कण कण में जीवन ज्योत जगाओ।
मैदानों पर उमड़
घुमड़ मचाओ,
जाकर सूरज की तपिश हटाओ,
खेतों में जीवन बन लहलाओ,
पशु पक्षी आनंदित कर आओ।
जलते , जंगली
आग बुझाओ,
सूखे वनों को प्राण लौटाओ,
सब प्यासे भटकते जाओ जाओ,
नव जीवन की लहर दौड़ाओ
मरू भूमि की तड़पन मिटाओ,
उसमे जाकर धड़कन सजाओ,
उसकी सूखी झोली भर आओ,
बन हरियाली वहां बस जाओ।
पहाड़ी
ढलानें धाराओं से धोकर,
मैदानी हवाओं
की आर्द्रता भिगोकर,
वनों की पत्तियों में टपक खनक कर,
रेगिस्तानी
सपनो में सिमट लिपट
कर।
बादल आज तुम जम के बरसो,
धरा की प्यास बुझाने बरसो,
तुम इसको अमृत से भर दो,
धरती को फिर पावन कर दो।
"सरोज"