निरुपम निरुत्तम ओढनी बर्फानी, है शिव जटा जल।
धरणी धमनियों में बहता, है अनुरागी अनुपम ।
वज्र भी, है यह धवल कमल कोमल।
सृष्टि स्मृति, संकल्प भी, है संतुलन ।
बद्री, केदार की आरतियाँ, अमरनाथ कैलासा यह ।
बौद्ध घंटियाँ, ऋषीकेश और ऋषी समाधियाँ यह ।
तुषार सिक्त अवनि, पद्मपाणि यह।
शुन्य अंकुरित चिर चेतना से ओ३म् तक का चरम उच्चारण यह ।
गंगा यमुना ब्रह्मपुत्र, है बहती सभी धाराएँ यह।
जल जनक, नद-नायक, है हरयाली की शपथ यह ।
खेत-खलिहानों में रचा बसा चिरंतन आल्हाददायक यह ।
वृष्टि का पावन मेघ, कृषक की उमंगों का उमड़ता आवेग यह।
"सरोज"